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सरकार की पहली प्राथमिकता जनगणना

सरकार की पहली प्राथमिकता जनगणना
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अजीत द्विवेदी
नई लोकसभा का पहला सत्र संपन्न हो गया है और अब सरकार मानसून सत्र की तैयारी कर रही है, जिसमें वित्त वर्ष 2024-25 का बजट पेश किया जाएगा। तीन जुलाई को खत्म हुए संसद सत्र में जनगणना को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। सवाल है कि 23 जुलाई को आने वाले बजट में क्या सरकार जनगणना की घोषणा करेगी और उसके लिए जरूरी धन का आवंटन करेगी? कायदे से यह भारत सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि जनगणना कराई जाए। हर 10 साल पर होने वाली जनगणना आखिरी बार 2011 में हुई थी। अभी तक सरकार उसी के आंकड़ों के आधार पर जन कल्याण की योजनाएं बना रही है। सब कुछ अनुमान के आधार पर हो रहा है, जिससे करोड़ों लोगों को सरकार की योजनाओं के दायरे से बाहर छूट जाने की आशंका है। समाज के अंतिम व्यक्ति तक लोक कल्याण की योजनाओं को पहुंचाने और प्रभावी नीति निर्धारण के लिए जरूरी है कि जनगणना हो।

ध्यान रखने की जरुरत है कि जनगणना होते ही उसके आंकड़े नहीं मिल जाते हैं। अंतिम आंकड़े आने में बहुत समय लगता है। अगर अभी जनगणना होगी और डिजिटल तरीके से होगी, जिसकी संभावना जताई जा रही है तब भी कम से कम दो साल लगेंगे अंतिम आंकड़े आने में। अगर जनगणना डिजिटल नहीं होती तो अंतिम आंकड़े आने में तीन से चार साल का समय लगता। सो, अगर अब भी प्राथमिकता के आधार पर जनगणना होती है तो 2026 से पहले अंतिम आंकड़े नहीं मिल पाएंगे। इससे ज्यादा समय भी लग सकता है। तभी यह आशंका भी जताई जा रही है कि सरकार जनगणना को टाल सकती है। क्योंकि 2024 में अगले तीन चार महीने में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। इस वजह से साल के अंत में ही जनगणना का काम शुरू होगा तो उसके अंतिम आंकड़े 2027 तक आएंगे। इसके दो साल बाद यानी 2029 से 2031 की जनगणना का काम शुरू करना होगा। ऐसे में अभी जनगणना टाली जा सकती है और कुछ अन्य सर्वेक्षणों व पुराने आंकड़ों के आधार पर तब तक काम चलाया जा सकता है।

लेकिन सवाल है कि सरकार ऐसा कैसे कर सकती है? नरेंद्र मोदी सरकार ने महिला आरक्षण के लिए नारी शक्ति वंदन का जो कानून पास किया है उसमें कहा गया है कि परिसीमन के बाद इसे लागू किया जाएगा। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने परिसीमन को लेकर जो संशोधन किया था उसके मुताबिक 2026 तक परिसीमन पर रोक है और उसमें कहा गया है कि उसके बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही परिसीमन किया जाएगा। तभी संभव है कि केंद्र सरकार इसे 2026 के बाद ही कराए या ऐसी टाइमलाइन बना कर कराए कि आंकड़े 2026 के बाद आएं और उसके आधार पर परिसीमन हो और 2029 से महिला आरक्षण भी लागू हो और एक साथ चुनाव का नियम भी लागू हो।
बहरहाल, जनगणना का क्या होगा, यह सरकार जाने लेकिन इसकी तत्काल जरुरत से इनकार नहीं किया जा सकता है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने 2019 में जनगणना की अधिसचूना जारी कर दी थी और 2020 में पहले चरण में मकानों के सर्वे का काम शुरू होने वाला था। लेकिन उसी समय कोरोना की महामारी फैल गई, जिसकी वजह से पहले चरण का काम भी नहीं हो पाया। हालांकि कोरोना की महामारी खत्म हुए भी दो साल से ज्यादा हो गए हैं। कोराना की दूसरी और बेहद घातक लहर 2021 के जुलाई तक खत्म हो गई थी। उसके बाद 2022 के शुरू तक देश के ज्यादातर लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक डोज लग चुकी थी। इसके बावजूद जनगणना का काम नहीं शुरू किया गया। तभी सरकार की मंशा पर सवाल भी उठ रहे हैं। अगर सरकार चाहती तो अब तक जनगणना हो चुकी होती और अगले कुछ दिन में प्रारंभिक आंकड़े मिल जाते।

बहरहाल, इस पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। क्योंकि नजगणना के आंकड़ों के बगैर प्रभावी नीति निर्धारण संभव नहीं है और न समाज के वंचित व पिछड़े तबके तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचा सकना संभव है। यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि जनगणना सिर्फ नागरिकों की संख्या गिनने का जरिया नहीं है। नागरिकों की संख्या का मोटा मोटी अनुमान तो सबको है। सब जान रहे हैं कि भारत की आबादी 142 करोड़ के करीब पहुंच गई है। इस संख्या की पुष्टि भर के लिए जनगणना नहीं होती है। जनगणना एक महती प्रक्रिया है, जिससे ढेरों आंकड़े जुटाए जाते हैं। ये आंकड़े सिर्फ सरकार के काम नहीं आते हैं। प्रशासकों से लेकर नीति निर्धारकों और गैर सरकारी संगठनों से लेकर अर्थशास्त्रियों, वैश्विक संस्थाओं और जनसंख्या के क्षेत्र में काम करने वाले जानकारों को इससे बहुत मदद मिलती है। लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के साथ साथ स्कूल बनवाने, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व अस्पतालों के निर्माण से लेकर बुनियादी ढांचे के निर्माण तक में जनसंख्या के आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों को मिलने वाले अनाज के वितरण पर इसका बड़ा असर होता है। पीडीएस सिस्टम पर काम करने वाले अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज का मानना है कि 2011 के आंकड़ों के आधार पर अभी तक यह काम हो रहा है और इस वजह से 10 करोड़ के करीब लोग इस योजना के लाभ से वंचित हो जाएंगे।

जनगणना से नागरिकों की संख्या का आंकड़ा तो मिलता है कि साथ ही देश की विविधता की भी एक तस्वीर सामने आती है। इससे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता की वास्तविक जानकारी मिलती है। इससे अलग अलग मानकों पर और अलग अलग पहलुओं से नागरिकों के अध्ययन की सुविधा प्राप्त होती है। केंद्र सरकार जब राज्यों के लिए अनुदान आदि की योजना तैयार करती है या बजट में इनके प्रावधानों का मौका आता है तो जनगणना के आंकड़े ही उसके निर्धारण का आधार बनते हैं। जनगणना से राज्यों के नागरिकों की वास्तविक आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक स्थिति का पता चलता है। राज्यों को उनकी आबादी और उसकी वास्तविक आर्थिक स्थितियों के अनुरूप केंद्र सरकार की मदद मिले, इसके लिए जनगणना के आंकड़े जरूरी होते हैं। 16वें वित्त आयोग का गठन हो गया है, जिसके अध्यक्ष अरविंद पनगढिय़ा हैं। वित्त आयोग को केंद्र व राज्यों के बीच राजस्व के वितरण का संतुलित रास्ता सुझाना होता है। जीएसटी की व्यवस्था लागू होने के बाद यह वितरण थोड़ा विवादित हो गया है। जनसंख्या के आंकड़े इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं। संघीय ढांचे के तहत किसी भी राज्य के साथ भेदभाव न हो इसके लिए भी जरूरी है कि जनसंख्या के वास्तविक आंकड़े सामने आएं और राज्यों की आबादी की विविधता और उनकी सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति का पता चले।

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